सृष्टि री रचना

 



   1. 


उत्पति

 

           

 अज संसारा मन् जे किछ भी हुजा अणहुजा सो सब किछ परमात्मे ही बणुरा ।पर परमात्मा इयां चीजा बणाणे थऊं पेहले थू , अजआ, अते जुगे-जुग रेहणा।सो नां ता जरम लेन्दा अते नां ता मरदा सो अजर -अमर हा।सबी थऊं पेहले परमात्मे अम्बर बणऊ,धरत बणाई,फिरी दिन अते रात बणाऐ,रुख बुटै,समुन्दर अते समुन्दरा मन् रहणे बाले जीव-जन्तु बी बणाऐ।दिना तांई सूरज बणऊ अते राती तांई चन्दरमा अते तारे बणाऐ।सब किछ बणाणे थऊं बाद फिरी परमात्मे मणु जो अपणे सा़ईं बणाणे री सोची।अते बल्लू,"तां जे सो मेरी बणंऊरी सबनी चीजा-बसती पर अपणा हक रखा।" ता परमात्मे चिका रा मणु साईं अक् गुडडा बणऊ अते तस मां जान पाई करी तस जो जिन्दा करी दिता परमात्मे तसेरा नाँ आदम रखु अते तस जो रैह़णे तांई अक् बाग लऊ। तस बागा मन् परमात्मे सबनी किस्मा रे छेळ-छेळ रुख-बुट लाये जटेरै फल खाणे जो सोआद थिये। पर आदमा जो परखने ताईं बागा रे मन्झे जिने परमात्मे दुई खास किस्मा रे रुख लाऐ जत मां अक्की रुखा रा फळ खरे बुरे रा ज्ञान दिन्दा थू अते दुऐ रूखा रा फळ हमेसा री जिंदड़ी दीणे वाला थू। फिरी परमात्मे आदमा जो हुक् दिता कि," तु बागा रे सबनी रुखा रे फळा जो नडरा भुची करी खाई सकदा पर खरे अते बुरे ज्ञाना रा जेड़ा रुखआ तटेरा फळ कदी मत खान्दा। कयो कि जे तेई ये फळ खऊ, तां तुद मरी गाह़णा ला। आदम बागा मन् केलहा ही रेहणा लगु। ता परमात्मे सोचू कि आदमा रा केलहा रेहणा ठीक नियां। यह सोची करी परमात्मे आदमा जो नघेर निदरा मन् सुलाई दिता। अते तसेरी अक् परही कड़ड़ी करी जनानी बणाई दिती अते तसा जो आदमा बलै लेई आ। आदमे तसा जनानी जो हेरी करी बल्लू, "एह ता मिंजो सांहई हा।" ता सो तसेरी वैटड़ी बणी अते तिनि तसारा नां हव्वा रखू। सो धोई मिली करी बागा मां रहणा लगे हालांकि सो नंगे थिऐ फिरी भी सो अक्की दुऐ थऊं जरा भी ना शरमांदे थिऐ।

 

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